चोल कला, जिसे चोल साम्राज्य की कला के रूप में जाना जाता है, दक्षिण भारत में 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच विकसित हुई। यह कला मुख्यतः मंदिर निर्माण, मूर्तिकला और चित्रकला में प्रकट होती है। चोल कला की विशेषता उसकी बारीकियों और जीवन्तता में है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों को दर्शाती है।
इस कला में ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवताओं की मूर्तियाँ प्रमुखता से बनाई गईं। चोल कला ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला पर गहरा प्रभाव डाला और इसे द्रविड़ शैली के रूप में जाना जाता है। इस कला के उदाहरण आज भी तंजावुर और गंगईकोंडचोलपुरम जैसे स्थलों पर देखे